Samarpan, गीत: के पतिया ले अनप्लग्ड अभिषेक झा, समर्पण

के पतिआ लए जाएत रे मोरा पियतम पास।

हिय नहिं सहए असह दुःख रे भेल सावन मास॥

एकसरि भवन पिया बिन रे मोरा रहलो न जाय।

सखि अनकर दुख दारुन रे के पतिआय॥

मोर मन हरि हरि लए गेल रे अपनो मन गेल।

गोकुल तजि मधुपुर बस रे कत अपजस लेल॥

विद्यापति कवि गाओल रे धनि धरु पिय पास।

आओत तोर मन भावन रे एहि कातिक मास॥

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