माधव , कि कहब सुंदरी रुपे |
कतन रतन बिही आनी समारल देखल नयन सरूपे ||1||
पल्लवराज चरनजुग सोभित गति गजराजक भाने |
कनक कदलि पर सिंह समारल तापर मेरु – समाने ||2||
मेरु ऊपर एक कमल फुलाएल ताल बिना रूचि पाई |
मनिमय हार धार बहु सुरसरी तें नही कमल सुखाई ||3||
उधर बिम्ब फल दसन दाड़िम बिज रबि ससि उगथी पासे |
राहू दूर बसु नियर न आबथि तें नही करथि गरासे ||4||
सारंग नयन वयन पुन सारंग तासु समधाने |
सारंग उपर उगल दस सारंग केलि करथि मधू पाने ||5||
भनई विद्यापति सुन वर जैवती एहन जगत नही आने |
राजा सिवसिंह रुपनराएन लखीना देई रमाने ||6|