कार्तिक मासे शुक्लपक्षे
छठि घाट किनार
आदित्य देव अएलखिन
रथ पर सवार ।
नारियल नेबो
केरा आर कुसियार
ठेकुआ सेहो
के बनल अछि प्रसाद ।
गंगा घाट जेहन
घाट हम बनेलौं ।
सांझके अरघ लेने ।
सबगोटे अयलौं ।
करु अरघ स्वीकार
हे छठि मैया
दिय स्नेह अपार ।
हे छठि मैया
दू पााृइके नोकरी
चारि दिनके जिनगी
मैया दिअ आशिर्वाद ।
दू पााृइके नोकरी
चारि दिनके जिनगी
मैया दिअ आशिर्वाद ।
छठि करी गामेमे सभक साथ ।
दिय दर्शन
हे छठि मैया
आब बीतल राइत ।
अहाँ बाती हम दिया ।
अहाँ बिना हम माइट ।
करु अरघ स्वीकार
हे छठि मैया
दिय स्नेह अपार ।
हे छठि मैया
करु अरघ स्वीकार
हे छठि मैया
दिय स्नेह अपार ।
हे छठि मैया
काँचहि बाँसके बहँगिया हो दिनानाथ
बहँगी लचकत जाय ।