कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ।
दुखहि जनम भेल दुखहि गमाएब सुख सपनहु नहिं भेल, हे भोला...
आछत चानन अवर गंगाजल बेलपात तोहि देब, हे भोला...
यहि भवसागर थाह कतहु नहिं, भैरव धरु कर पाए, हे भोला...
भव विद्यापति मोर भोलानाथ गति, देहु अभय बर मोहिं, हे भोला...